अहद ए फारूकी में सिंध पर पहली मुहीम

 (हजरत उमर फारूक के शासन में सिंध पर पहली चढ़ाई)


अल्लामा दाऊद बलाजरी लिखते हैं 15 हिज़री में खुलफाए राशिदीन के दूसरे खलीफा उमर बिन खत्ताब रजी० ने उस्मान बिन अबू आसी सकफी को बहरैन व अम्मान ( यमन के एक शहर का नाम ) वाली ( हाकिम ) बनाया तो उसने अपने भाई हुक्म को बहरैन की तरफ भेजा और खुद अम्मान की जानिब चल दिया। अम्मान पहुंचकर एक लश्कर *ताना ( यमन के एक शहर का नाम ) की तरफ भेजा, जब यह लश्कर वापिस आया तो हजरत उमर रजी० को उसकी खबर देने के लिए लिखा। हजरत उमर रजी० ने उसे लिखा कि ऐ सकीफ के ना तजुर्बा कार नौजवान तूने कीड़े को लकड़ी पर सवार दिया, बेशक मैं खुदा की कसम खाता हूं कि अगर वह हलाक ( मर ) हो जाते तो मैं तेरी कौम से उतने ही आदमी ले लेता और उस्मान ने हुक्म को बरोस की जानिब भी भेज दिया और अपने दूसरे भाई मुगीरा बिन आसी को खलीज दिबल ( दिबल की खाड़ी )की जानिब भेज दिया। दुश्मन से उसकी मुठभेड़ हुई और उसने फतह हासिल की और कामरानी से वापस आया।


 अहद ए उस्मानी में सिंध पर मुहीम

( हजरत उस्मान गनी के शासन में सिंध पर चढ़ाई )

जब हजरत उस्मान गनी रजी० खलीफा हुए और अब्दुल्लाह बिन आमिर को उन्होंने इराक़ का गवर्नर बनाया और उसके पास ये हुक्म लिखा कि वह सरहदे हिंद की जानिब किसी ऐसे शख्स को भेजे जो वहां के सही हालात मालूम करे  और वापस आकर खलीफा को खबर दे तो अब्दुल्लाह ने हकीम बिन जिबला अहदी को रवाना किया और जब हकीम हिंद से वापस गया तो उसे हजरत उस्मान रजी० के पास अब्दुल्लाह ने भेज दिया। हजरत उस्मान रजी० ने उससे हिंदुस्तान के शहरों का हाल दरयाफ्त किया तो हकीम ने अर्ज़ किया कि या अमीरूल मोमिनिन मैंने वहां के हालात से बहुत अच्छी तरह वाकिफ हासिल की है और खूब तहकीकात की और और वहां के लोगो को आजमाया है आप ने फरमाया तफसीली हालात बयान करो हकीम ने कहा हिंदुस्तान में पानी थोड़ा है और वहां के लुटेरे बहुत दिलेर हैं अगर लश्कर कम हो तो तबाह हो जाए और अगर ज्यादा हो तो भूखा मर जाए।       

हजरत उस्मान रजी० ने उससे फरमाया तु हालात बयान करता है या तुकबंदी करता है, कहा नही हुजूर सही बयान करता हु। आपने सकुत इख्तियार फरमाया और वहां किसी को लड़ने के वास्ते नही भेजा।

 

अहद ए अली मुर्तुजा में सिंध पर मुहीम

( हजरत अली मुर्तुजा के शासन में सिंध पर चढ़ाई )

जब 38 हिज़री का आखरी और 39 हिज़री का आग़ाज़ हुआ तो हजरत अली रजी० के अहद ए खिलाफत में हारिस बिन अब्दी सवाब की नियत से हजरत अली रजी० की इजाजत से सरहद की जानिब चल दिए, चुनांचे उसने फतह हासिल की और बहुत कुछ माल़ ए गनीमत और कैदी उसके हाथ आए। चुनांचा उसने एक दिन में एक हजार कैदी तक्सीम किए। फिर कैकान ( तुलात ) की तरफ बढ़ा वहां मुक़ाबला सख़्त रहा जिसमे हारिस और उसके तमाम कुछ आदमियों को छोड़कर कत्ल हो गए, यह 42 हिजरी में हुआ। कैकान खुरासान के सिंध के मशहूर शहरों में से है ( अब पाकिस्तान में है ) ।


तर्जुमा - इब्राहिम आबिस