अहदे अब्दुल मुल्क

जब हुज्जाज बिन अल हकीम बिन अबी अकील सक्फी, अब्दुल मुल्क की तरफ से इराक़ का हाकिम बना तो उसने सईद बिन असलम को मकरान और सिंध की सरहद का गवर्नर बनाया। जब सईद मकरान पहुंचा तो मुआविया बिन हारिस इलाफी और मुहम्मद बिन हारिस इलाफ़ी उसके मुकाबले पर निकले, लड़ाई हुई और सईद कत्ल हो गया और इलाफ़ी तमाम इलाकों पर काबिज़ हो गए। इलाफ का नाम रूबान बिन हलवान बिन इलाफ़ बिन कज़ाअ है। इसके बाद हुज्जाज ने मजाआ को उस सरहद का गवर्नर बनाया। मजाआ ने यहां आकर जंग की और माले गनीमत हासिल किया और कंदाबील के बहुत से गिरोहों के हिस्सों को फतह किया फिर मुहम्मद बिन कासिम ने इस फतह को आगे बढ़ाया।  मजाआ एक साल बाद मकरान में वफात पा गया।



शायर कहता है -

जिस किसी जंग में तु ऐ मजाआ शरीक हुआ उसी का तजकरा तुझे ज़ेब देता है। क्योंकि तूने हर जंग में अपनी बहादुरी के जौहर दिखलाए।

  फिर हुज्जाज ने मजाआ की वफात के बाद मुहम्मद बिन हारून नमरी को मकरान का हाकिम बनाया। इसकी हुकूमत के ज़माने में याकूत टापू ( इसे जजीरा यकुत इसलिए कहा जाता है की यहां की औरतें बहुत खूबसूरत होती हैं ) सरनदीप के बादशाह ने हुज्जाज के पास चंद मुस्लमान औरतें बतौर तोहफा भेजी जो उसके मुल्क में मुस्लमान पैदा हुई थीं और उनके बाप दादा व्यापार करते थे और उनका वहीं इंतेकाल हो गया था, और उसने इनके ज़रिए हुज्जाज से नज़दीकी बढ़ाने का इरादा किया था। जिस कश्ती मे ये औरतें सफर कर रही थीं, उसको दबील सजरी कज्जाकों के एक गिरोह ने छोटी छोटी जंगी कश्तियों में सवार होकर घेर लिया और कश्ती के सामान और औरतों को पकड़ लिया। इसमें से एक औरत ने या हुज्जाज कहकर आवाज दी। हुज्जाज को इसकी खबर पहुंची तो उसने बेसाख्ता कहा ' लब्बैक ' हां मैं आया और फौरन सिंध के राजा दाहिर के पास क़ासिद ( डाकिया ) भेजा और उन औरतों को छोड़ने का मुतालबा किया। राजा दाहिर ने जवाब दिया कि उन औरतों को तो दरयाई डाकुओं ने पकड़ा है जिन पर मेरा काबू नही। आप ही उनका ख़बर लें। ये सुनकर हुज्जाज आग बबूला हो गया और उसने अब्दुल्लाह बिन निबहान को दबील पर हमला करने भेजा। अब्दुल्लाह इस जंग में कत्ल हो गया। फिर हुज्जाज ने बदील बिन तहफा को ( जो ओमान का हाकिम था ) हुक्म लिखा की वह दबील रवाना हो जाए लेकिन जब वह याकुत टापू पर पहुंचा और दुश्मन से मुक़ाबला हुआ तो उसका घोड़ा उसे ज़मीन पर गिरा दिया और दुश्मनों ने उसे घेर लिया और मार डाला। कुछ इतिहासकारों ने लिखा है कि उसे बौद्ध मज़हब के जाटों ने कत्ल किया। इधर अब्दुल मुल्क फौत हो गया, और वलीद तख्ते खिलाफत पर बैठा।

तर्जुमा - इब्राहिम आबिस