मुहम्मद बिन कासिम और राजा दाहिर की जंगे। Part - 1
93 हिजरी ( सन् 712 ई० ) में क़िला दबील को तलवार के बल पर फतह कर लिया। राजा दाहिर का हाकिम दबील से भाग गया।
मुहम्मद बिन
कासिम ने मुस्लमानों को दबील में ज़मीनें तक्सीम की एक मस्जिद तामीर की। चार हजार
मुस्लमानों को वहां आबाद किया और दबील को *उसाकर ए इस्लामिया ( इस्लाम के फौज ) के
लिए एक फौजी मरकज बना दिया। उसके बाद हारून बिन अबू खालिद बिन मुरुजी को सिंध का
गवर्नर बना दिया मगर थोड़े ही समय बाद उसे कत्ल कर दिया गया।
इतिहासकार
लिखते हैं कि मुहम्मद बिन कासिम दबील से नेजोन आया। नेज़ोन वालो से उसके आने से
पहले दो साधू हुज्जाज के पास भेजकर सुलह ( सन्धि) कर ली। लिहाज़ा उन्होंने मुहम्मद
बिन कासिम के लिए सामान का इंतजाम किया और उसे शहर लेकर गए सालाना कीमत अदा किया।
मुहम्मद बिन कासिम जिस शहर से गुजरता था उसी को फतह कर लेता था यहां तक कि दरिया ए
सिंध के किनारे जो नहर थी उसे आबाद किया और वहां पहुंचकर सरयबदास आया और यहां
के लोगों ने सुलह करली और उन पर खिराज
मुकर्रर कर दिया और वहां से सोहबान गया और उसे भी फतह किया फिर दरिया ए सिंध की
तरफ रुख किया और उसके दरमियानी हिस्सा पर उतरा। दाहिर को इसकी खबर पहुंची और उसने
मुहम्मद बिन कासिम से मुक़ाबला के लिए ज़बरदस्त तैयारियां शुरू की।
मुहम्मद बिन
कासिम ने मुहम्मद बिन मुसअब सक्फी को सेना के साथ सर्दसान ( स्युस्तान ) भेजा।
वहां के लोगों ने अमन और सुलह करना पसंद किया, साधुओं की एक जमात ने दोनों गिरोह के बीच तय हुआ। मुहम्मद बिन मुसअब ने उनको
सही, सलामत और उन पर खिराज
मुकर्रर किया और बिना किसी गर्ज उनसे कुछ बेहतरीन आदमी बतौर ज़मानत तलब किया और
चार हजार जाटों को साथ लेकर मुहम्मद बिन कासिम के साथ फौज में शामिल हो गया और
सर्दसान पर एक हाकिम तय कर दिया। मुहम्मद बिन कासिम दरिया ए सिंध में रास्ता बनाने
की कोशिश की, क्योंकि दाहिर ने सारे पुल उठवा लिए थे। रासिल के इलाका के पास पुल बांध कर
दरिया ए सिंध को पार किया।
दाहिर
मुहम्मद बिन कासिम को हकीर ( जलील/ छोटा ) समझता था और उसकी जानिब से बिलकुल
बेपरवाह था, आखिरकार मुहम्मद बिन कासिम का राजा दाहिर से मुक़ाबला हुआ। दाहिर हाथी पर सवार
था, हाथियों का एक गिरोह
उसके चारों तरफ था। ठाकुर राजपूत भी बहुत बड़ी तादाद में उसके साथ थे। दोनों ऐसी
सख्त लड़ाई लड़े की इससे पहले ऐसी लड़ाई कभी नहीं सुनी गई थी। यहां तक कि दाहिर
अपने पूरे जान व हिम्मत से लड़ा, लड़ते लड़ते शाम के वक्त 10 रमजान 93 हिजरी ( सन् 712 ई० ) में उसकी मृत्यु हो गई। राजा दाहिर को जिसने कत्ल किया वो कबीला बनू
कलाब का एक शख्स था, उसने उस मौके पर ये शेर पढ़ा।
तर्जुमा -
मुहम्मद बिन कासिम और नेज़ें सब
शाहिद ( गवाह ) हैं कि बेशक मैने बगैर मुंह मोडे दाहिर और दुश्मनों से लड़ता रहा
यहां तक कि हमने तलवार लेकर राजा दाहिर पर टूट पड़ा और उसे मिट्टी में रुखसार के
बल बगैर तकिया के पड़ा हुआ छोड़ दिया ( मतलब कि मैंने राजा दाहिर को जंग में ऐसा
मिट्टी में मिला दिया कि सिंहासन पर बैठने वाला आज मिट्टी में पड़ा हुआ है )
दाहिर और उसके कातिल का मुजस्सिमा 'बरूस' में बना हुआ था और बदील बिन तुहका
का मुजस्सिमा कुंद में है और उसकी कब्र दबील में है। अली बिन मुहम्मद मदायनी अबू
मुहम्मद हिन्दी से नकल करते हैं कि अबू अल फराह ने बयान किया कि जब दाहिर कत्ल कर
दिया गया तो मुहम्मद बिन कासिम तमाम सिंघ पर काबिज हो गया। इब्ने कल्बी ने बयान
किया कि जिसने दाहिर को कत्ल किया है वह कासिम बिन अब्दुल्लाह बिन हसन तलाई है।
इतिहासकार कहते हैं कि मुहम्मद बिन कासिम ने
दबील को तलवार के दम पर फतह किया। किला दबील में दाहिर की बीवी पनाह ले रही थी, उसको खौफ हुआ कि वह पकड़ी न जाए लिहाज़ा उसने खुदको और अपने औरतों के साथ और
तमाम माल के साथ जलकर सती हो गई। फिर मुहम्मद बिन कासिम पुराने ब्रह्मणाबाद आया, ये मनसूरा से चार मील दूर था। उन दिनों मनसुरा नही हुआ करता था बल्कि उसकी जगह
झाड़ियां थीं, दाहिर की फौज हारने के बाद यहीं
छिपी हुई थी। लिहाज़ा उन्होंने मुहम्मद बिन कासिम से जबरदस्त जंग की और आखिरकार
मुहम्मद बिन कासिम ने ब्रह्माणबाद को अपने तलवार के जोर पर फतह कर लिया और आठ हजार
फौज को हराकर उन्हें कत्ल कर दिया और कहा जाता है कि छब्बीस हजार और अपना हाकिम
बसाकर छोड़ दिया।
1 Comments
Good
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